अरूणिमा
क्या तुम वही खिलाड़ी हो जिसे हम सबने भूला दिया था। तुम्हारे साथ हुए हादसे के चंद
दिनों बाद ही जब तुम ख़बर से दूर क्या हुईं, हम शायद तुम्हारे प्रतिभा को भूल गए
थे। हम भूल गए कि तुम एक खिलाड़ी हो और खिलाड़ी की प्रतिभा कभी मरती नहीं है, वो
हमेशा जीवित रहती है। तुमने जो कारनामा कर दिखाया है अरूणिमा उसे पूरा देश सलाम
करता है।
एक
तरफ जहां भारत के पास अरूणिमा जैसी होनहार खिलाड़ी है, तो वहीं दूसरी ओर भारत के
पास कुछ ऐसे भी खिलाड़ी है जो देश की गरिमा और अखंडता को तार-तार करते हैं, वो भी
शायद कुछ पैसों के लिए। आईपीएल में इन दिनों स्पॉट फिक्सिंग का मामला जोरो पर है। स्पॉट
फिक्सिंग में फंसे क्रिकेटर जहां क्रिकेट प्रेमियों को दु:ख
पहुंचाते हैं। वहीं अरूणिमा जैसे प्रतिभावान खिलाड़ी चुपचाप ऐसी इबारत लिख जाते
हैं जिसे खेल प्रेमी गर्व महसूस करते हैं। सच में अरूणिमा ने वो कारनामा कर दिखाया
है जिससे न सिर्फ खेल प्रेमी बल्कि भारत का हर नौजवान भारतीय होने पर गर्व महसूस
करे। 25 वर्षीय विकलांग अरुणिमा ने ऐसा अजूबा कर दिखाया, जिसे
हर कोई सलाम कर रहा है। अरुणिमा ने प्रोस्थेटिक पैरों की मदद से माउंट एवरेस्ट
पर विजय हासिल की और ऐसा करने वाली वह विश्व की पहली विकलांग महिला बन गई।
‘पंगु लंघै गिरिवर अनय’ अरूणिमा
ने इस कहावत को सच साबित कर दिया, कि कोई ताकत है जो लंगड़े को भी पहाड़ लांघने की
शक्ति देती है। दो वर्ष पहले अरुणिमा सिन्हा ने एक रेल दुर्घटना में अपना पैर गंवा
दिया था। किंतु उन्होंने माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करके संकल्प व साहस का नया
उदाहरण पेश किया है। इस भारतीय महिला ने 21 मई 2013 को प्रातः यह कारनामा कर
दिखाया। इतिहास के पन्नों में अब हमेशा ये तारीख याद रखी जाएगी। अरूणिमा मूल रूप
से उत्तर प्रदेश के अम्बेडकर नगर की रहने वाली है। अरुणिमा विकलांग होने से पहले
राष्ट्रीस्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी थीं। 12 अप्रैल 2011 में लखनऊ से दिल्ली आते समय
कुछ अपराधियों ने पदमावती एक्सप्रेस से उसे बाहर फेंक दिया था, जिसके
कारण उनका बायां पैर ट्रेन से कट गया था। हालांकि इससे पहले पुरुषों में एक ब्रिटिश
पर्वतारोही टॉम वैटकर ने 1998 में माउंट एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने वाले पहले
विकलांग पुरुष का सम्मान प्राप्त किया था।
अरुणिमा ने टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन के
सहयोग से विश्व की सबसे ऊंची चोटी पर मंगलवार सुबह 10 बजकर 55 मिनट पर तिरंगा
फहराया। यह संयोग ही है कि उन्होंने यह महान उपलब्धि सर एडमंड हिलेरी एवं तेनजिंग
नॉर्गे द्वारा 29 मई, 1953 को विश्व की सर्वोच्च चोटी पर हासिल की गई
विजय की 60वीं जयंती पर हासिल की। अरुणिमा ने टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन
(टीएसएएफ) की चीफ एवं एवरेस्ट पर फतह हासिल करने वाली पहली भारतीय महिला सुश्री
बचेन्द्री पाल के मार्गदर्शन में प्रशिक्षण हासिल किया। अरुणिमा ने अपनी यात्रा
काठमांडू से प्रारंभ की और अपना अभियान 52 दिनों में पूरा किया।
अगर
हौंसले हों बुलंद और इरादे हो मजबूत तो मंजिल कदमों में आ झुकती है। अपने इस
इरादों से अरूणिमा ने ये साबित कर दिया है कि दुनिया में कोई ऐसा नहीं है जिसे
पूरा न किया जा सके। इस आर्टिकल के जरिए मै इतना जरूर कहना चाहूंगा कि अरूणिमा
जैसी प्रतिभावान ने खिलाड़ी ने खिलाड़ियों को एक मैसेज जरूर दिया है जो देश के
प्रति नहीं बल्कि अपने लिए खेलते हैं, अपनी जरूरतों के लिए और चंद पैसे को लिए
खेलते हैं। वो शायद ये भूल जाते हैं कि जिस देश में खेल को धर्मस्थल माना जाता है
खिलाड़ियों को देवता मान लेते हैं लोग, उसी देश में खेल के प्रति गद्दारी करने वालों
खिलाड़ियों का क्या अंजाम हो सकता है, ये तो आप सबके सामने हैं।
2 comments:
दो साल पहले पद्मावती एक्सप्रेस में जब कुछ बदमाशों ने चलती ट्रेन से अरुणिमा को फेंक दिया ता और उसे एक टांग गंवानी पड़ी ती, तब किसी ने यह नहीं सोटा चा कि वह फिर से इतनी जल्दी में नई जिंदगी शुरू कर सकेगी, लेकिन एवरेस्ट को फतह करके उसने अपने सारे विरोधियों की बोलती बंद कर दी है। अरुणिमा आपके जब्जे और लगन को भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व सलाम करता है। भारत की इस बेटी पर सभी को नाज है।
दो साल पहले पद्मावती एक्सप्रेस में जब कुछ बदमाशों ने चलती ट्रेन से अरुणिमा को फेंक दिया ता और उसे एक टांग गंवानी पड़ी ती, तब किसी ने यह नहीं सोटा चा कि वह फिर से इतनी जल्दी में नई जिंदगी शुरू कर सकेगी, लेकिन एवरेस्ट को फतह करके उसने अपने सारे विरोधियों की बोलती बंद कर दी है। अरुणिमा आपके जब्जे और लगन को भारत ही नहीं संपूर्ण विश्व सलाम करता है। भारत की इस बेटी पर सभी को नाज है।
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